हम बहुधा बच्चों को कोई नया काम करते देख कर हडबड़ा जाते हैं. घड़ी छू रहा है, कहीं तोड़ न डाले. बच्चे ने क़लम हाथ में लिया और हाँ...हाँ..हाँ..का शोर मचा!ऐसा नहीं होना चाहिए.बालकों की स्वाभाविक रचनाशीलता को जगाना चाहिए. बालक खिलौने बनाना चाहे या बेतार का यंत्र ; चाहे नाटकों में अभिनय करना चाहे या कविता लिखना चाहे, लिखने दो....माता-पिता की यह कोशिश होनी चाहिए कि उनके बच्चे उन्हें पतथर की मूर्ति या पहेली न समझें.हमें बच्चों को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह खुद अपने मार्ग का निश्चय कर लें.छोटा बच्चा भी, अगर उसे सीधे रास्ते पर लगाया जाय, तो वह अपनी ज़िम्मेदारी को समझने लगता है.बच्चे को सही शिक्षा देना इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि उसके जीवन का उद्देश्य कार्यक्षेत्र में आना है.:प्रेमचंद



दादी माँ की कहानियाँ

बचपन में हमने भी खूब सुनीं ऐसी कहानियां।कभी दादी से तो कभी नानी से.आप भी ज़रूर सुनते होंगे बच्चो! घर पर अगर आपके कोई न हो तो क्यों न आप इस तरह इन कहानियों का मज़ा लें.लीजिये मैं ने आपके लिए लाया है दादी माँ के खजाने से ढेरों कहानियां जो आपको न केवल हंसाएंगी रुलायेंगी बल्कि ढेरों सीख और शिक्षा भी देंगी.जैसे हमें क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए.

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बन्दर की बदमाशियाँ

बच्चों आज आपके लिए कुछ ऐसी कहानियां लेकर आई हूँ जिनके केंद्र में बन्दर है और उनकी कुछ चुहल, कुछ चालाकियां..

आपको पसंद आएँगी ज़रूर..
इन से आप सीख अवश्य लें..


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मंज़िल के चिराग़

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