तितलियों के संग मैना की बातें करना !! आसमान में तैरते हुए बारिश की छतरी में खूब मज़ा आता है न बच्चो !!!आएश और आमश भला चुप क्यों रहते.सुनते कहानी बन्दर की तो कभी सियार की!! मज़ा लो.तुम भी.मेंढक की सवारी करते हुए..
आम के एक पेड़ मेंलाली चिड़िया रहती थी। वह बड़ीदयालु और परिश्रमी थी। दिन-रात वहअपने काम में मगन रहती थी। उसकाएक छोटा-सा प्यार-सा बच्चा था।उसने उसका प्यारा-सा नाम रखा था- मुनमुन।
हम बहुधा बच्चों को कोई नया काम करते देख कर हडबड़ा जाते हैं. घड़ी छू रहा है, कहीं तोड़ न डाले. बच्चे ने क़लम हाथ में लिया और हाँ...हाँ..हाँ..का शोर मचा!ऐसा नहीं होना चाहिए.बालकों की स्वाभाविक रचनाशीलता को जगाना चाहिए. बालक खिलौने बनाना चाहे या बेतार का यंत्र ; चाहे नाटकों में अभिनय करना चाहे या कविता लिखना चाहे, लिखने दो....माता-पिता की यह कोशिश होनी चाहिए कि उनके बच्चे उन्हें पतथर की मूर्ति या पहेली न समझें.हमें बच्चों को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह खुद अपने मार्ग का निश्चय कर लें.छोटा बच्चा भी, अगर उसे सीधे रास्ते पर लगाया जाय, तो वह अपनी ज़िम्मेदारी को समझने लगता है.बच्चे को सही शिक्षा देना इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि उसके जीवन का उद्देश्य कार्यक्षेत्र में आना है.:प्रेमचंद
बच्चों समय कम है..वरना मैं आपको टाइप स्क्रिप्ट में कहानी पढवाती..लेकिन क्या करूं समय ही न मिला. आपके भाई आएश, आमश और इनके बाबा समय दे तब न!! कहानी आपको ज़रूर पसंद आएगी..पढने के लिए इस चित्र पर क्लिक करें....
ghar ki baaten plz blog par nahin ho.....meri or se tumhain poori aazaadi hai..samay ki..ek waqt nishchit kar lo ya din..blogpost k liye... mihnat dikhti hai..i m wth u..dheron mubarakbaad!!
अंत में कहानी का सार अवश्य दिया करें जिससे नन्हों को आपका और कथा का मंतव्य समझ में आ जाये ! जैसे आप यहाँ अंत में लिख सकती हैं कि बिना बुद्धि के बहादुरी किसी काम की नहीं ! या मुसीबत में घबराना नहीं चाहिए और बुद्धि का प्रयोग करें या घमंड में बुद्धि नष्ट हो जाती है ! आदि हाँ शहरोज भाई की बात से सहमत हूँ , आप इस समय घर में नहीं समाज के मध्य स्टेज पर हैं और हम आपको देख रहे हैं ....
February 18, 2010 at 9:12 AM
मुझे तो आपका ब्लॉग मनमोहक लगा - बच्चों को भी बहुत भायेगा - हार्दिक शुभकामनाएं
February 18, 2010 at 9:44 AM
ghar ki baaten plz blog par nahin ho.....meri or se tumhain poori aazaadi hai..samay ki..ek waqt nishchit kar lo ya din..blogpost k liye...
mihnat dikhti hai..i m wth u..dheron mubarakbaad!!
February 18, 2010 at 10:39 AM
अच्छा लगा बचपन में पढ़ी कहानी फिर से देखकर.
February 19, 2010 at 2:14 AM
bachpan yaad aaya
February 20, 2010 at 6:12 PM
अंत में कहानी का सार अवश्य दिया करें जिससे नन्हों को आपका और कथा का मंतव्य समझ में आ जाये !
जैसे आप यहाँ अंत में लिख सकती हैं कि
बिना बुद्धि के बहादुरी किसी काम की नहीं !
या मुसीबत में घबराना नहीं चाहिए और बुद्धि का प्रयोग करें
या घमंड में बुद्धि नष्ट हो जाती है ! आदि
हाँ शहरोज भाई की बात से सहमत हूँ , आप इस समय घर में नहीं समाज के मध्य स्टेज पर हैं और हम आपको देख रहे हैं ....
February 20, 2010 at 9:29 PM
satish ji aapse sahmat!! sujhao ke liye aapki shukrguzar hun.aainda zarur dhyaan rakhungi.